थानगांव महमूदाबाद (सीतापुर)
दशकों से घाघरा नदी की विनाशलीला झेलने वाले रामपुर मथुरा क्षेत्र के दर्जनों गांवों के सैकड़ों किसानों की हजारों एकड़ फसल के साथ भारी जन-धन की हानि को रोकने के लिए करोड़ोें रुपए की लागत से बन रहा बंधा में जगह-जगह मिट्टी बैठ गई है और बीच में कई स्थानों पर बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं। इसको लेकर 27 जुलाई को खबर का प्रकाशन किया था। जिस पर विभागीय अधिकारियों द्वारा बंधा की मरम्मत का कार्य युद्धस्तर पर शुरू करा दिया गया। बंधे पर विभागीय अधिकारियों द्वारा मजदूर लगाकर बंधे पर पड गई दरारें व जगह जगह हो रहे गड्ढों को बंद करने का काम युद्धस्तर पर किया जा रहा है।
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ज्ञातव्य हो कि रामपुर मथुरा क्षेत्र में बड़ी नदी के नाम से विख्यात घाघरा नदी की प्रलयंकारी बाढ़ दशकों से किसानों की फसल के साथ आशियाने तबाह करती रही है। बीते करीब एक दशक से घाघरा में बैराजों का लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाने से तबाही झेलना क्षेत्र वासियों की आदत सी बन गई थी। बांधों के पानी को रोकने तथा नदी के किनारे बंधा निर्माण की मांग को लेकर क्षेत्र के समाजसेवी संगठनों द्वारा वर्षों से की जा रही थी। जनहित की मांग को जन प्रतिनिधियों ने गंभीरता से लेकर प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सरकारों से समस्या समाधान पर समुचित कदम उठाने की मांग की। लंबी जद्दोजहद के बाद शुरू हुए बांध निर्माण से किसान राहत की सांस लेते हुए काफी खुश थे। घाघरा नदी के किनारे रेउसा के चहलारी घाट से बाराबंकी के एल्गिन ब्रिज तक 55 किलोमीटर लंबे बंधे का निर्माण हो रहा है। करीब साढ़ पाच सौ करोड़ की लागत से बनने वाले इस बंधे का निर्माण सिंचाई विभाग बाढ़ प्रखंड बाराबंकी द्वारा कराया जा रहा है। किंतु बनाया गया बंधा पहली बरसात होते ही किसानों की खुशियां गायब होती दिख रही थी। पहली बरसात ही बंधा नहीं झेल सका। बंधे के ऊपर पानी भर जाने के बाद जगह-जगह मिट्टी बैठ गई और कई स्थानों पर बंधे के बीच गहरी दरारे पड़ गई थीं। किसानों की समस्याओं को देखते हुए ‘‘एक बरसात भी नहीं झेल सका पांच सौ करोड से बनने वाला बांध’’ शीर्षक से खबर का प्रकाशन किया था। जिस पर विभागीय अधिकारियों द्वारा मरम्मत का कार्य युद्धस्तर पर शुरू कर दिया गया।
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ज्ञातव्य हो कि रामपुर मथुरा क्षेत्र में बड़ी नदी के नाम से विख्यात घाघरा नदी की प्रलयंकारी बाढ़ दशकों से किसानों की फसल के साथ आशियाने तबाह करती रही है। बीते करीब एक दशक से घाघरा में बैराजों का लाखों क्यूसेक पानी छोड़े जाने से तबाही झेलना क्षेत्र वासियों की आदत सी बन गई थी। बांधों के पानी को रोकने तथा नदी के किनारे बंधा निर्माण की मांग को लेकर क्षेत्र के समाजसेवी संगठनों द्वारा वर्षों से की जा रही थी। जनहित की मांग को जन प्रतिनिधियों ने गंभीरता से लेकर प्रदेश से लेकर केंद्र तक की सरकारों से समस्या समाधान पर समुचित कदम उठाने की मांग की। लंबी जद्दोजहद के बाद शुरू हुए बांध निर्माण से किसान राहत की सांस लेते हुए काफी खुश थे। घाघरा नदी के किनारे रेउसा के चहलारी घाट से बाराबंकी के एल्गिन ब्रिज तक 55 किलोमीटर लंबे बंधे का निर्माण हो रहा है। करीब साढ़ पाच सौ करोड़ की लागत से बनने वाले इस बंधे का निर्माण सिंचाई विभाग बाढ़ प्रखंड बाराबंकी द्वारा कराया जा रहा है। किंतु बनाया गया बंधा पहली बरसात होते ही किसानों की खुशियां गायब होती दिख रही थी। पहली बरसात ही बंधा नहीं झेल सका। बंधे के ऊपर पानी भर जाने के बाद जगह-जगह मिट्टी बैठ गई और कई स्थानों पर बंधे के बीच गहरी दरारे पड़ गई थीं। किसानों की समस्याओं को देखते हुए ‘‘एक बरसात भी नहीं झेल सका पांच सौ करोड से बनने वाला बांध’’ शीर्षक से खबर का प्रकाशन किया था। जिस पर विभागीय अधिकारियों द्वारा मरम्मत का कार्य युद्धस्तर पर शुरू कर दिया गया।