धर्म से ही हो सकता है दुखों का निवारण- यादुवेन्द्र सागर जी

shri yaduvendra sagar ji

महमूदाबाद, सीतापुर
धर्म का अर्थ होता है कि गिरते हुए को ऊपर उठाना।  जैसे कोई व्यक्ति ऊपर से नीचे गिर रहा है वह और नीचे न जाये धर्मशील व्यक्ति का कर्तव्य होता है कि उसे धर्म मार्ग पर लाकर ऊपर उठाने का काम करे। उक्त उद्गार जैन मुनि श्री यादुवेन्द्र सागर जी महाराज ने महमूदाबाद के सरावगी टोला में स्थित श्री 1008 शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर के सभागार में प्रवचन के दौरान व्यक्त किये। उन्होने कहा कि यह जीव अनादि काल से चारों गति के चैरासी लाख योनियों में भटकता हुआ नाना प्रकार के दुखों को उठा रहा है। उन दुखों का निवारण धर्म से ही हो सकता है। उन्होने कहा कि धर्म दो प्रकार का है। एक मुनि धर्म दूसरा श्रावक धर्म। मुनि धर्म के माध्यम से मनुष्य योनि से सीधे मोक्ष प्राप्त हो सकता है  दूसरा धर्म श्रावक धर्म है श्रावक धर्म में मनुष्य धीरे धीरे मोक्ष की ओर पहुंचता है। उन्होने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे दिल्ली पहुंचने के लिये दो मार्ग है पहला मार्ग रेल मार्ग, दूसरा मार्ग हवाई मार्ग। मुनि धर्म हवाई मार्ग की भांति हैं और श्रावक धर्म रेल मार्ग की भांति है। इसलिये प्रत्येक श्रावक को मुनि धर्म पालन करने का प्रयत्न करना चाहिए। तभी उसकी आत्मा को मुक्ति मिल सकती है। इस अवसर पर बडी संख्या में जैन श्रावक व श्राविकाएं उपस्थित थे।

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