यहां 300 वर्षाें से हो रही है एक मछली की पूजा


Posted By- Ayush Jain
विश्व में आस्था के विभिन्न रूप है। कहा भी जाता है कि आस्था की शक्ति के सामने तर्क-वितर्क मिथ्या हो जाते है कोई मायने नहीं रखते यही बात गुजरात में स्थित एक मत्स्य माता मंदिर पर भी लागू होती है। यहां व्हेल मछली की अस्थियों की पूजा की जाती है। यह मंदिर गुजरात की वलसाड तहसील में मंगोद डुंगरी गांव में स्थित है। यहां व्हेल मछली की अस्थियों की पूजा होती है यह स्थान मत्स्य माता के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि श्रद्धालु उस व्हेल मछली की यहां देवी के रूप में पूजा करते है। मंदिर के इतिहास के अनुसार यह करीब तीन सौ साल पुराना है। इसके निर्माण में मछुआरों ने प्रमुखता से भाग लिया था। इसके बाद उनमें यह परंपरा शुरू हो गई कि मछली पकडने के लिये समुद्र में जाने से पहले मत्स्य माता की पूजा की जाती, मछुआरे श्रद्धा से यहां मन्नत मांगते। मंदिर के साथ एक रोचक कथा जुडी है। कहा जाता है कि करीब तीन सौ साल पहले प्रभु टण्डेल नामक व्यक्ति को सपना आया जिसमें उसे एक  व्हेल दिखी। सपने के मुताबिक व्हेल मृत अवस्था में थी। दूसरे दिन वह समुद्र किनारे गया तो देखा वहां सख् में एक विशाल मृत अवस्था में पडी थी। जब प्रभु टण्डेल ने लोगो को यह बात बताई तो लोगो को आश्चर्य हुआ और मंदिर बनवा दिया। मदिर में मछली की अस्थियां स्थापित की गई। कहा जाता है कि शीघ्र ही पूरे गांव में कोई रोग फैल गया। जब लोगो को अपनी भूल का एहसास हुआ तो वे प्रभु टण्डेल के पास गये उन्होने गांव में पुनः सुख षांति की मन्नत मांगी। जीवन पुनः सुचारू रूप से चलने लगा। लोगो का दृढ विश्वास है कि मत्स्य माता की कृपा से वे न केवल सकुशल लौट आएंगे, बल्कि उन्हे इस काम में मुनाफा भी हेगा। मंदिर में धार्मिक कार्य आज भी टण्डेल परिसर की देखरेख में पूर्ण होते है।
इनपुट- एक दैनिक अखबार के अनुसार

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